Sunday, 23 September 2007

जेल जाने के डर से चुप नहीं रहा जा सकता

इलीना सेन की पहचान डॉ विनायक सेन की पत्नी के बजाय एक सक्रिय मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अधिक है. चार माह पहले जब डॉ विनायक सेन को छत्तीसगढ़ सरकार ने गिरफ्तार किया था तो आशंका जतायी जा रही थी कि इलीना सेन को भी गिरफ्तार किया जा सकता है. डॉ विनायक सेन के आरोपपत्र की जो भाषा थी, उससे साफ पता चलता है कि सरकार और प्रशासन बेहद विनम्र इस महिला के बारे में क्या धारणा रखती है. शनिवार को इलीना सेन पटना में थीं. उनसे प्रभात खबर के लिए की गयी बातचीत के कुछ हिस्से यहां प्रस्तुत कर रहा हूं.

पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनायक सेन कोई अनजाना नाम नहीं रह गया है. उन्हें गत मई में नक्सलियों का समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. इलीना सेन बताती हैं कि असल में डॉ सेन छत्तीसगढ़ में मानवाधिकारों पर हमलों, कारपोरेट लूट, सरकारी दमन के खिलाफ लगातार बोलते रहे. सलवा जुडूम के बारे में सबसे पहले डॉ सेन की ही पहल पर जांच की गयी और लोगों को पता चला कि आदिवासियों पर किस तरह आतंक थोप दिया गया है. इन सब कारणों से डॉ सेन सरकार के निशाने पर थे.

सेन ने डॉ सेन पर लगाये गये आरोपों को असंबद्ध और बकवास बताया. उन्होंने बताया कि पुलिस ने एक सबूत यह दिया कि राजनांदगांव में मुठभेड़ के बाद भागे नक्सलियों से छूटे दस्तावेजों में डॉ सेन का नाम था. मगर जो दस्तावेज प्रस्तुत किया गया, वह धुंधला (दिखने में अस्पष्ट) था. जब पुलिस से कहा गया कि वह मूल प्रति दिखाये तो उसने बताया कि मूल प्रति (जो मिली वह) तो है ही नहीं. इसी तरह एक और आरोप डॉ सेन के ऊपर लगाया गया कि वे माओवादी नेता नारायण सान्याल से जेल में मिलते थे और उनकी चिटि्ठयां भाकपा (माओवादी) तक पहुंचाते थे, जिसके कारण माओवादी अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए थे. इलीना सेन ने प्रतिप्रश्न किया कि जेल सुपरिटेंडेंट की अनुमति से जेलर के सामने वे मुलाकातें हुईं, ऐसे में क्या यह संभव था?

इलीना सेन ने कहा कि जब माओवादियों की तरफ से आम नागरिकों के प्रति हिंसा होती है तो हम उसे भी कंडेम करते हैं. छत्तीसगढ़ में गृहयुद्ध चल रहा है और ऐसे में पुलिसिया कार्रवाई करके कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. छत्तीसगढ़ की जनता भूखी है, उसे कोई बुनियादी सुविधा मुहैया नहीं है, न स्वास्थ्य, न शिक्षा. ऐसे में वह क्या करे अगर वह दखल न दे? राज्य के अनेक इलाकों में लोग बहुत न्यूनतम स्तर का जीवन जीते हैं. यही वे इलाके हैं, जहां माओवादियों की पकड़ लगातार मजबूत हुई है. आज़ादी के बाद से 60 साल बीत गये. लोग कब तक धीरज धरे रहेंगे? वे कुछ न कुछ तो करेंगे ही.

इलीना सेन ने महिलाओं के शोषण को उजागर करने में काफी काम किया है. उनका कहना है कि राज्य में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब है. सलवा जुडूम और दूसरी कार्रवाइयों में उन पर अत्याचार और बढ़ा है. स्वास्थ्य की स्थिति तो बहुत खराब है. उनमें भारी कुपोषण है. जो आजीविका के साधन थे इलाके के लोगों के, वे चौपट हो गये हैं. सैन्य बल महिलाओं का काफी शोषण करते हैं. 100 से ज्यादा मामले सिर्फ हमने दर्ज किये हैं- और न दर्ज हो पानेवाले मामलों की संख्या इससे कहीं ज्यादा होगी. सरकार महिलाओं के लिए कुछ नहीं करती. बस चटनी-आचार बनाने के प्रशिक्षण दिये जाते हैं, पर वह कोई समाधान नहीं है.

इलीना सेन बताती हैं कि सलवा जुडूम के दौरान उजाड़े गये लोगों को जिन सरकारी राहंत कैंपों में रखा गया था, उन कैंपों को स्थायी राजस्व ग्राम में बदले जाने की बात आयी है. और इन राहत कैंपों में रहनेवाले जिन गांवों को छोड़ कर आये हैं वे उजाड़ दिये गये गांव एमएनसीज को दे दिये जायेंगे. असल में सलवा जुडूम अभियान ही इसीलिए चलाया गया था कि जमीनें खाली हों तो उन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दिया जाये. लोहंडीगुडा में आदिवासी ग्राम सभा ने जमीन बेचने की अनुमति नहीं दी तो फर्ज़ी ग्रामसभा बना कर उससे अनुमति दिला दी गयी. अब कहा जा रहा है कि एक बार ग्रामसभा ने अनुमति दे दी तो दोबारा उस पर विचार नहीं किया जा सकता. स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं तो उन्हें माओवादी बताया जा रहा है, जबकि वे सीपीआइ से जुडे़ हुए हैं.

इलीना सेन बताती हैं कि राज्य में बौद्धिक माहौल में गिरावट आयी है. कोई भी सरकार के और इन कार्रवाइयों के विरोध में बोलना नहीं चाहता. उनलोगों को लगता है कि ग्लोबलाइजेशन से उन्हें फायदा है.इलीना सेन के अनुसार डॉ सेन इतने सिंपल हैं कि उनके बारे में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि वे हिंसक कार्रवाइयों को सपोर्ट कर सकते हैं.

इलीना सेन थोड़ा हंसती हैं-डॉ सेन की चार्ज शीट की जो भाषा है उस पर. उसमें कहा गया है कि डॉ सेन का काम डॉक्टरी रूप से शून्य है. इलीना बताती हैं कि जब छत्तीसगढ़ बना था तो पहली सरकार ने राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए जो सलाहकार समिति बनायी थी, उसमें डॉ सेन एक प्रमुख सलाहकार थे (इलीना सेन भी उस समिति की सदस्य थीं). अब यह भाजपा सरकार आयी है तो इसे पता ही नहीं कि उनका डॉक्टरी योगदान क्या है.

पूरे छत्तीसगढ़ की स्थिति पर इलीना सेन ने कहा कि सरकार सैन्यीकरण को बढ़ा रही है. युवाओं के लिए सारे अवसर बंद हैं. केवल सेना में नौजवानों की भरती हो रही है. बड़ा बजट है नक्सलियों को खत्म करने का. नक्सली समस्या है तो कइयों को फायदा है इससे. स्थास्थ्य बजट से अधिक का बजट है नक्सली उन्मूलन का.

कहा जाता है कि वहां सीआरपीएफ लोगों की सुरक्षा के लिए हैं. जो उनकी चौकियां हैं उनमें बाहर एसपीओ रहते हैं और उनके सुरक्षा घेरे में सीआरपीएफ. एसपीओ तो स्थानीय लोग ही बनते हैं. आप देखिए कि कौन किसकी सुरक्षा कर रहा है.मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बढ़ती दमनात्मक कार्रवाइयों से चिंतित इलीना सेन कहती हैं कि जेल जाने का शौक किसी को नहीं होता. अगर कोई गलत काम होता है तो उस पर जेल जाने के डर से चुप भी नहीं रहा जा सकता. पीयूसीएल के पास जो भी रास्ते हो सकते हैं, उन्हें वह अपना रहा है अपना विरोध दर्ज कराने के लिए.

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